दोस्तों , Chillar को छोटा मत समझो! जानें कैसे 10-20 रुपये की चिल्लर छोटे-बड़े व्यापारियों के लिए बड़ी कमाई का राज है। पढ़िए इस मजेदार लेख में सुविधाजनक मूल्य निर्धारण और उसके बिजनेस ट्रिक्स के बारे में!
Chillar का छोटा सा राज़, बड़ा सा धमाका!
अरे भाई, कभी सोचा है कि जेब में पड़ी वो 10-20 रुपये की चिल्लर कितनी बड़ी बात बन सकती है? हां, वही Chillar जो शर्ट की जेब में या पर्स की साइड पॉकेट में खनकती रहती है! छोटा सा सिक्का, लेकिन जब बात बिजनेस की आती है, तो ये चिल्लर एकदम जैकपॉट बन जाती है।
आज हम बात करेंगे एक ऐसे फंडे की, जो छोटे दुकान से लेकर बड़े-ब्रांडेड कंपनियों तक सब के बिजनेस को चमका रहा है – सुविधाजनक मूल्य निर्धारण या सरल भाषा में, चिल्लर का खेल!

सोचो ज़रा, जब बच्चा आइसक्रीम के लिए ज़िद करता है, या बीवी फोन करके कहती है, “आज शाम के लिए थोड़ी अच्छी सी सब्जी ला दो,” तो कौन सा पैसा निकलता हो? वो पर्स में स्लीक से रखे नोट या जेब में खनकती चिल्लर? 99% लॉग बोलेंगे – Chillar! क्योंकि दिमाग के एक कोने में ये बात बैठ जाती है कि चिल्लर तो बस छोटा-मोटा पैसा है, इसे क्या फर्क पड़ता है?
लेकिन यही छोटी सी सोच बड़े-बड़े बिजनेस का राज है। तो चलो, इस चिल्लर के खेल को समझते हैं:-
चिल्लर का मनोविज्ञान – दिमाग का खेल
भाई, ये Chillar का सीन बड़ा दिलचस्प है। सोचो, एक 20 रुपये का सिक्का और एक 20 रुपये का नोट – दोनो की कीमत एक ही है, लेकिन जब खर्च करने की बात आती है, तो सिक्का पहले निकल जाता है। क्यों? क्योंकि हमारा दिमाग सिक्के को “छोटा” समझता है।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक, जब लोग किसी चीज के लिए थोड़ी सी नकदी-नकड़ करते हैं – जैसे बच्चे के लिए आइसक्रीम या घर के लिए अतिरिक्त सब्जी – तो वह जेब में पड़ी चिल्लर ही खर्च करते हैं। नोट को तो दिमाग बड़े प्यार से “बचाने” की सोच रहा है।

ये मनोविज्ञान बड़ा कमाल की है। जब तुम आइसक्रीम वाले को 10 रुपये का सिक्का देते हो, तो दिल को लगेगा, “अरे, बस थोड़ी सी चिल्लर ही तो दी!” लेकिन अगर वही 10 रुपये का नोट दिया, तो दिमाग बोलेगा, “हाय, नोट क्यों दिया?” इसी फंडे को Management वाले बोलते हैं – सुविधा मूल्य निर्धारण बिंदु। मतलब, ऐसी कीमत जो ग्राहक के दिमाग में छोटा लगे, भले ही वो पैसा उतना ही हो। ये ट्रिक हर रोज़ हमारे साथ खेलती है, और हम ख़ुशी-ख़ुशी इसमें फंस जाते हैं!
ब्रांडेड कंपनियों का चिल्लर गेम
अब ये चिल्लर का खेल सिर्फ छोटे दुकान तक नहीं रुका, बड़े-बड़े ब्रांड भी इसमें कूद पड़े हैं। सोचो, एक बार जब शैम्पू या कोल्ड ड्रिंक के बड़े-बड़े पैक ही मिले थे, लेकिन अब? हर चीज़ का छोटा पैक आ गया है – 10 रुपये का शैम्पू, 20 रुपये का कोल्ड ड्रिंक, और 15 रुपये का लस्सी का पाउच! ये सब Chillar के चक्कर में ही तो आया है।
बड़े ब्रांड्स ने भारतीय मानसिकता को पकड़ लिया है। उन्हें पता है कि हम लोग छोटी-छोटी चीज़ों पर चिल्लर खर्च करने में नहीं सोचते। इसलिए अपने उत्पादों को ऐसे मूल्य बिंदुओं पर लाते हैं जो हमें लगे, “अरे, बस इतना ही तो है!” इसे न सिर्फ उनकी बिक्री बढ़ती है, बल्कि निम्न-मध्यम वर्ग वाले लोग भी उन चीजों को खरीदते हैं जो पहले उनके लिए “लक्जरी” लगती थी।
एक 10 रुपये का शैम्पू पैक खरीद के लड़की सोचती है, “वाह, मैंने तो बड़े ब्रांड का शैम्पू इस्तेमाल किया!” और ब्रांड का मुनाफा? वो तो छोटा पैक, बड़ा धमाका वाला है!
सब्जी वाले भैया का जादू
अरे, ये चिल्लर का फंडा तो असल में हमारे सब्जी वाले भैया ने शुरू किया था! हां, वही जो गली के नुक्कड़ पर 10-20 रुपये में सब्जी का “गुच्चा” बेचता है। सोचो, जब एक आलू ही 50 रुपये किलो हो गया है, तो ये सब्जी वाले कैसे इतने सस्ते में सब्जी देते हैं?
फंडा है- सुविधाजनक मूल्य निर्धारण। वो एक गुच्छ बनाते हैं, जिसमें थोड़ा आलू, थोड़ा प्याज़, एक बैंगन, दो टमाटर, और थोड़ी हरी मिर्च होती है। ये गुच्चा दो लोगों के लिए या पांच लोगों के लिए परफेक्ट होता है – एक टाइम की रोटी के लिए काफी।
ये सब्जी वाले बड़े चतुर होते हैं। वो बोलते हैं, “भाभी जी, ये गुच्छे बस 20 रुपये का, दो लोगों के लिए एकदम परफेक्ट!” और भाभी जी ख़ुशी-ख़ुशी ले लेती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें छोटा सा पैसा खर्च करके पूरी सब्जी का जुगाड़ कर लेना चाहिए।
असल में, ये सब्जी वाला दिन के अंत में अपना बच्चा-कूचा स्टॉक ऐसे ही बेच देता है, और उसका मुनाफा भी हो जाता है। चिल्लर का ये खेल सब्जी के ठेले से शुरू होकर बड़े मॉल तक चला गया है!
रेस्टोरेंट में Chillar का हंगामा
अब बात करते हैं रेस्टोरेंट्स की, जो भी इस चिल्लर के खेल में कूद पड़े हैं। एक उदाहरण लेते हैं – प्रीत विहार, पूर्वी दिल्ली में 14 जनवरी 2025 को खुला एक रेस्तरां, उडुपी आहार। ये लोग सुबह के नाश्ते में 299 रुपये में अनलिमिटेड डोसा देते हैं, लेकिन ये ऑफर सिर्फ सुबह 11 बजे तक है। अब सोचो, 299 रुपये में कितना डोसा खा सकते हो?
ज़्यादातार लोग दो-तीन डोसा खा के ही फुल हो जाते हैं, लेकिन ये “अनलिमिटेड” का टैग सुनते ही लोग खींचे चले आते हैं।
इस रेस्टोरेंट का क्या फ़ायदा ? पदयात्रा! मतलब, लोग ज्यादा आते हैं, और जब आते हैं तो शायद एक कॉफी या इडली भी ऑर्डर कर लेते हैं। हां, थोड़ी सी दोसा बर्बादी होती है, लेकिन उसके रेस्तरां का बिजनेस बढ़ता है। अब वो लोग शायद “भोजन ही भगवान है” जैसा नारा भी लाये, ताकि बर्बादी कम हो। लेकिन असली बात वही है – 299 रुपये का ये मूल्य बिंदु इतना “सुविधाजनक” है कि ग्राहक को लगे, “अरे, इतने में तो मजा आ गया!”
छोटा पैक, बड़ा मुनाफा
चलो, थोड़ी बिज़नेस की बात करते हैं। ये छोटा पैक वाला सीन ब्रांड्स के लिए क्यों काम करता है? क्योंकि ये एकदम परफेक्ट है भारतीय बाजार के लिए। भारत में लोग एक बार में बड़ा पैक खरीदने से पहले सोचेंगे, लेकिन छोटा पैक? वो तो चिल्लर में ही आ जाता है! एक 10 रुपये का शैम्पू पैक ख़रीदना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन वही शैम्पू का बड़ा पैक 200 रुपये का होगा, तो लोग दो बार सोचेंगे।
ब्रांड्स ने इस फंडे को पकड़ लिया है। वो छोटे पैक्स बनाते हैं, और उन्हें हर नुक्कड़ की दुकान पर लपेटते हैं। गांव से लेकर शहर तक, हर जगह ये छोटे पैक बिकते हैं।
और जब लोग इन्हें बार-बार खरीदते हैं, तो ब्रांड का मुनाफा दोगुना-तिगुना हो जाता है। सोचो, एक कोल्ड ड्रिंक की बड़ी बोतल 40 रुपये की है, लेकिन 10 रुपये का पाउच हर रोज बिकता है – कौनसा ज्यादा प्रॉफिट देगा? छोटा पैक, बड़ा धमाका!
मिडिल क्लास का सपना
ये चिल्लर का खेल सिर्फ पैसे का नहीं, इमोशन का भी है। मध्यम वर्ग और निम्न-मध्यम वर्ग के लिए, ये छोटे पैक्स एक सपने जैसा है। सोचो, एक गरीब परिवार जो पहले सोचता था कि ब्रांडेड शैम्पू या कोल्ड ड्रिंक उनके बजट से बाहर है, अब वो 10-20 रुपये में वही चीज खरीद सकता है। इसे लगता है कि वो भी थोड़ी सी “लक्जरी” जी रहे हैं।
एक बच्चा जब 10 रुपये की आइसक्रीम खाता है, तो उसके चेहरे की खुशी देखो। एक आंटी जब 15 रुपये का लस्सी पाउच खरीदती है, तो उसे लगता है, “अरे, मैंने तो बड़े ब्रांड का लस्सी पिया!” ये छोटी-छोटी खुशियां ही तो चिल्लर का असली जादू है। ब्रांड्स इमोशन को समझते हैं, और इसी के लिए वो छोटे पैक्स पर इतना फोकस कर रहे हैं।
सब्जी से शैम्पू तक – हर जगह Chillar
Chillar का ये फंडा हर जगह काम कर रहा है – सब्जी के ठेले से लेकर शैम्पू के विज्ञापन तक। सोचो, जब सब्जी वाला 20 रुपये में एक गच्छा देता है, तो वो भी यही सोचता है कि ग्राहक खुशी-खुशी ले लेगा। और जब एक ब्रांड 10 रुपये में शैम्पू का पाउच बेचता है, तो वह भी यही सोचता है। डोनो का फंडा एक ही है – छोटी कीमत, बड़ा ग्राहक आधार।
अब तो ये ट्रिक इतनी पॉपुलर हो गई है कि हर इंडस्ट्री इसमें कूद पड़ी है। कोल्ड ड्रिंक, स्नैक्स, साबुन, शैंपू, और अब तो रेस्तरां भी इस चिल्लर के खेल में शामिल हो गए हैं। हर कोई चाहता है कि उसका उत्पाद हर जेब तक पहुंचे, और हर जेब का मतलब है -Chillar !
चिल्लर का भविष्य – और भी बड़ा होगा
अब ये चिल्लर का सीन तो अभी और बड़ा होने वाला है। जैसी-जैसी महंगाई बढ़ेगी, वैसे-वैसे ब्रांड और दुकान नए तरीके निकालेंगे छोटे दामों को आकर्षक बनाने के।
शायद कल को 50 रुपये का गुच्छ आये, या 30 रुपये का शैम्पू पैक! लेकिन फंडा वही रहेगा – ग्राहक को ये एहसास दिलाओ कि वो छोटा पैसा खर्च करके बड़ी चीज हासिल कर रहा है।
टेक्नोलॉजी भी इसमें हाथ बंटाएगी। ऑनलाइन ऐप्स अब छोटे-छोटे रिचार्ज और उत्पाद बेच रहे हैं – 10 रुपये का डेटा पैक, 20 रुपये का सब्सक्रिप्शन! ये सब भी तो चिल्लर का ही खेल है। भविष्य में शायद ऐ भी चिल्लर के हिसाब से उत्पाद सुझाएगा – “सर, ये 15 रुपये का स्नैक ट्राई करो, परफेक्ट है!”
Chillar से सीखें- बिजनेस का फंडा
तो दोस्तों, Chillar से एक बड़ा सबक मिलता है – अगर बिजनेस करना है, तो ग्राहक के दिमाग को समझो। वो क्या सोचता है? वो कहां खर्च करता है? अगर तुम अपने उत्पाद को उसके “चिल्लर” वाले मानसिकता के हिसाब से बेच सको, तो तुम्हारा बिजनेस एकडुम रॉकेट की तरह उड़ेगा।
सोचो, एक सब्जी वाला भी ये ट्रिक यूज़ करता है, तो एक बड़ा ब्रांड क्यों नहीं? बस यही है असली बिजनेस का फंडा- कीमत कम, मुनाफा बड़ा। और ये ट्रिक हर किसी के लिए काम करती है – छोटे दुकान से लेकर बड़े मॉल तक।
चिल्लर है बॉस!
तो दोस्तों, ये थी चिल्लर की बड़ी बात! एक छोटा सा सिक्का जो ना सिर्फ जेब में खनकता है, बल्कि बड़े-बड़े बिजनेस का इंजन भी चलता है।
सब्जी वाले से लेकर ब्रांडेड कंपनियों तक, हर कोई इस चिल्लर के खेल को खेल रहा है, और जीत रहा है दिल और मुनाफा दो। ये चिल्लर का फंडा ना सिर्फ बिजनेस के लिए है, बल्कि एक जिंदगी का सबक भी है – छोटी-छोटी चीजों में भी बड़ा पोटेंशियल होता है।
तो अगली बार जब जेब में चिल्लर खनके, तो उसे छोटा मत समझना। वो छोटा सिक्का शायद तुम्हें एक बड़ा आइडिया दे दे! और हां, ये आर्टिकल पढ़ के मजा आया हो, तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करो, और चिल्लर के इस खेल को और बड़ा करो!
अस्वीकरण :-अरे भाई, ये आर्टिकल तो बस Chillar के मजेदार खेल को समझने के लिए लिखा गया है। हमने जो भी बातें की, वो सामान्य अवलोकन और बाजार के रुझान पर आधारित हैं।
हर बिजनेस और कस्टमर का अपना अलग फंडा होता है, तो ये जरूरी नहीं कि ये ट्रिक हर जगह 100% काम करे। अगर कोई बिजनेस प्लान बना रहा हो, तो थोड़ी रिसर्च और एक्सपर्ट की सलाह भी ले लेना। और हां, ये लेख सिर्फ मस्ती और ज्ञान के लिए है, इसमें कोई वित्तीय सलाह नहीं है। Chillar से खेलना, लेकिन सोच-समझ के!
Faqs :-
1. ये “सुविधाजनक मूल्य निर्धारण” क्या होता है?
ये एक सिंपल फंडा है जिसमें उत्पाद का मूल्य ऐसा रखा जाता है कि ग्राहक को लगे, “बस इतना ही तो है!” जैसा 10-20 रुपये का शैम्पू या सब्जी का गुच्चा।
2. चिल्लर का ये खेल कैसा काम करता है?
हमारा दिमाग चिल्लर को छोटा समझता है, इसलिए हम उसे जल्दी खर्च कर देते हैं। ब्रांड्स इसी मनोविज्ञान का फ़ायदा उठाते हैं और छोटे पैक बेचते हैं।
3. क्या बड़े ब्रांड भी चिल्लर का इस्तेमाल करते हैं?
हां भाई, शैंपू, कोल्ड ड्रिंक, स्नैक्स – सब छोटे पैक्स में आते हैं ताकि हर कोई खरीद सके। ये बड़े ब्रांड्स का छोटा सा राज़ है!
4. सब्जी वाले कैसे चिल्लर का खेल खेलते हैं?
वो 10-20 रुपये में सब्जी का गुच्छे बेचते हैं, जिसने ग्राहक को लगे की उन्हें सस्ता सौदा पकड़ा लिया। असल में, ये उनका स्टॉक क्लियर करने का तरीका है।
5. रेस्टोरेंट में ये ट्रिक कैसी काम करती है?
जैसा अनलिमिटेड डोसा वाला ऑफर – 299 रुपये में इतना खिला देंगे कि ग्राहक खुशी-खुशी आए, और रेस्टोरेंट का फुटफॉल बढ़े।






