आजकल विज्ञान और तकनीक ने हमारे जीवन को काफी आसान बना दिया है। खासकर कृषि के क्षेत्र में नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे हमारे खाने की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार हो रहा है। इन्हीं तकनीकों में से एक है “Genome Editing”। यह तकनीक हमारे खाने को और भी पौष्टिक बना सकती है।
लेकिन इसके साथ ही, हमें अपने पुराने तरीकों को भी नहीं भूलना चाहिए, खासकर दादी-नानी के वो नुस्खे जो हमें स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। आइए, इस पोस्ट को विस्तार से समझते हैं और देखते हैं कि जीनोम एडिटिंग और दादी माँ के नुस्खे कैसे हमारे भविष्य को बेहतर बना सकते हैं।
जीनोम एडिटिंग क्या है?
Genome Editing एक ऐसी तकनीक है जिसमें किसी जीव के डीएनए में बदलाव किया जाता है। यह बदलाव डीएनए में जीन को जोड़ने, हटाने या फिर उसमें कुछ बदलाव करके किया जाता है। इस तकनीक का उद्देश्य यह है कि हम पौधों और जानवरों में ऐसे गुण पैदा कर सकें जो उन्हें और भी बेहतर बनाएं। उदाहरण के लिए, अगर हम एक टमाटर के पौधे के जीन में बदलाव करें, तो उस टमाटर में विटामिन डी की मात्रा बढ़ सकती है। यह तकनीक हमें ऐसी सब्जियां और फल दे सकती है जो न सिर्फ स्वादिष्ट हों, बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद हों।

Benefits of Genome Editing-
1. पोषक तत्वों में वृद्धि : जीनोम एडिटिंग के जरिए हम सब्जियों और फलों में विटामिन, मिनरल और अन्य पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर) ने एक ऐसा टमाटर विकसित किया है जो विटामिन डी से भरपूर है।
2. जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता**: जीनोम एडिटिंग के जरिए हम ऐसी फसलें विकसित कर सकते हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेल सकें। यानी, ये फसलें सूखे, बाढ़ या अन्य प्राकृतिक आपदाओं में भी अच्छी तरह से उग सकेंगी।
3. रोग प्रतिरोधक क्षमता: इस तकनीक से हम ऐसी फसलें विकसित कर सकते हैं जो कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी हों। इससे फसलों को नुकसान कम होगा और उत्पादन बढ़ेगा।
4. खाद्य सुरक्षा: जीनोम एडिटिंग के जरिए हम ऐसी फसलें विकसित कर सकते हैं जो कम पानी और कम उर्वरक में भी अच्छी तरह से उग सकें। इससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी और दुनिया भर में भूखमरी की समस्या को कम किया जा सकेगा।
जीनोम एडिटिंग और जीएम फसलों में अंतर
कई लोग जीनोम एडिटिंग और जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) फसलों को एक ही समझते हैं, लेकिन यह गलत है। दोनों में काफी अंतर है। जीएम फसलों में पौधे के डीएनए में बाहरी जीन को डाला जाता है, जबकि जीनोम एडिटिंग में पौधे के अपने जीन में बदलाव किया जाता है। यानी, जीनोम एडिटिंग में हम पौधे के मौजूदा जीन को ही एडिट करते हैं, न कि उसमें बाहरी जीन डालते हैं। इसलिए, जीनोम एडिटिंग को जीएम फसलों की तुलना में अधिक सुरक्षित माना जाता है।

भारत में जीनोम एडिटिंग की संभावनाएं-
भारत में जीनोम एडिटिंग (Genome Editing) को लेकर काफी उम्मीदें हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर) जैसे संस्थान इस दिशा में काम कर रहे हैं। आईआईएचआर ने बेंगलुरु में 30 करोड़ रुपये की लागत से एक उत्कृष्टता केंद्र बनाया है, जहां जीनोम एडिटिंग पर शोध किया जा रहा है। इस परियोजना के तहत 16 किस्मों की सब्जियों, फलों और मसालों पर काम किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि साल 2047 तक इस परियोजना से देश में लगभग 700 मिलियन टन सब्जियां पैदा हो सकेंगी।
दादी माँ के नुस्खे: पुराने तरीके, नए फायदे-
जबकि Genome Editing हमारे भविष्य को बेहतर बना सकती है, हमें अपने पुराने तरीकों को भी नहीं भूलना चाहिए। दादी-नानी के वो नुस्खे आज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। उन्हें पता था कि कैसे बचे हुए खाने का इस्तेमाल करके न सिर्फ पैसे बचाए जा सकते हैं, बल्कि स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाया जा सकता है।
1. बचे हुए खाने का सही इस्तेमाल: दादी माँ रात के बचे चावल और रोटी से चटपटी डिशेज बनाने में माहिर थीं। यह न सिर्फ स्वादिष्ट होता था, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद था। आज विशेषज्ञों ने पाया है कि बचे हुए खाने को ठंडा करने से उसमें मौजूद स्टार्च रेजिस्टेंट स्टार्च (आरएस) में बदल जाता है, जो आंतों के लिए अच्छा होता है और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
2. कैलोरी कम करने का तरीका: दादी माँ जानती थीं कि बचे हुए खाने को ठंडा करके खाने से कैलोरी कम हो जाती है। ठंडा होने पर खाने में मौजूद स्टार्च के अणु एक साथ कसकर पैक हो जाते हैं, जिससे उन्हें पचाना मुश्किल हो जाता है। इससे शुगर के अणु आसानी से नहीं टूटते और रक्तप्रवाह में अवशोषित नहीं होते।
3. फूड वेस्टेज को रोकना: दादी माँ के नुस्खे न सिर्फ सेहत के लिए अच्छे थे, बल्कि इनसे खाने की बर्बादी भी कम होती थी। यह पैसे बचाने का भी एक अच्छा तरीका था।
जीनोम एडिटिंग और दादी माँ के नुस्खे: दोनों का महत्व
जीनोम एडिटिंग और दादी माँ के नुस्खे दोनों ही हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। जीनोम एडिटिंग हमें ऐसी फसलें दे सकती है जो पोषक तत्वों से भरपूर हों और जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील हों। वहीं, दादी माँ के नुस्खे हमें यह सिखाते हैं कि कैसे बचे हुए खाने का सही इस्तेमाल करके न सिर्फ पैसे बचाए जा सकते हैं, बल्कि सेहत को भी बेहतर बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष-
Genome Editing और दादी माँ के नुस्खे दोनों ही हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। जीनोम एडिटिंग हमें ऐसी फसलें दे सकती है जो पोषक तत्वों से भरपूर हों और जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील हों।
वहीं, दादी माँ के नुस्खे हमें यह सिखाते हैं कि कैसे बचे हुए खाने का सही इस्तेमाल करके न सिर्फ पैसे बचाए जा सकते हैं, बल्कि सेहत को भी बेहतर बनाया जा सकता है। इसलिए, जब तक Genome Editing हमारे बाजारों में पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हो जाती, हमें दादी माँ के नुस्खों को अपनाना चाहिए और अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहिए।






